१६ दिन की वह अवधि (पक्ष/पख) है जिसमें हिन्दू लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिण्डदान करते हैं। इसे 'सोलह श्राद्ध', 'महालय पक्ष', 'अपर पक्ष' आदि नामों से भी जाना जाता है।
पितृपक्ष , जिसे श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। यह पर्व हर वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होता है और अमावस्या तक चलता है। इस सोलह दिनों की अवधि में हिन्दू धर्मावलंबी अपने पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए विशेष अनुष्ठान, तर्पण, और पिंडदान करते हैं। पितृपक्ष का महत्व इस विचार पर आधारित है कि इस अवधि में पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों से जल, पिंड, और अन्न की आकांक्षा करती हैं। पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए किए गए इन अनुष्ठानों को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इन अनुष्ठानों के माध्यम से पितरों को तृप्त करने से उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, जो परिवार के समृद्धि, शांति, और उन्नति के लिए आवश्यक है।
पितृपक्ष का महत्व वेदों और पुराणों में विस्तार से बताया गया है। यह वह समय होता है जब हम अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करते हैं। ‘श्राद्ध’ शब्द ‘श्रद्धा’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है श्रद्धा के साथ किया गया कार्य। यह कार्य मृतात्माओं की तृप्ति के लिए किया जाता है।